वस्तु कही ढूंढे कही..

 वस्तु कही ढूंढे कही..


वस्तु कही ढूंढे कही.. कही विधि आये हाथ..? कहे कबीर वस्तु तब पाईये.. भेदी लीजे साथ..!!


भेदी लीन्हा साथ कर.. वास्तु दई लखाय..! कोटि जनम का पंथ था.. पल में पहुंचा जाय..!!


घट-धत में प्रभुजी का वास है... लेकिन ज्ञान न होने से मनुध्य इसकी खोज में दर-दर भटकता रहता है..! कबीर साहेब कहते हाईइयह वस्त (प्रभु) तभी प्राप्त होगी.. जब भेदी (समय के सद्गुरु) का साथ मिलेगा....! जैसे ही भेदी- सद्गुरु का साथ-सानिध्य प्राप्त होता है... वस्तु (प्रभुजी) का दिग्दर्शन घर के भीतर ही हो जाता है..! ऐसे महान सद्गुरुजी की कृपा से जोमंजिल कोटि जन्म में भी प्राप्त नहीं हो सकती है... उस मंजिल मुकाम पर क्षण भर में ही सद्गुरु-कृपा से भक्त सरलता और सहजता से पहुँच जाता है..!!

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